Jump Play हिंदी में छलाँग

इस नाटक का नाम हिन्दी में छलाँग होता। छलांग जो हम बचपन में अपने कमरे के बिस्तर से जमीन पर लगाते थे, छलांग जो हम आपस में बातचीत के दौरान अपने विचारों में खो जाने के लिए लगाते हैं, छलांग जो कभी हम वक़्त से भागने के लिए लगाते हैं और कभी वक़्त हमसे दूर जाने के लिए लगाता हैं। छलांग जो हम लगा देते हैं ऊपर किसी ऊँची बिल्डिंग से। छलांग जब हमारा दिमाग हमारे अंग से छल करके उसे उड़ जाने को कहता है।

कभी-कभी छलाँग लगाना बात करने से ज्यादा आसान लगता है। पर बात करना इतना आसान थोड़ी ना है। बात करने के लिए सुनने वाले को ढूँढ़ना पड़ता है। और कीमत भी चुकानी पड़ती है।

कई साल पहले मेरे दोस्त ने मुझे बताया था कि वह दो बार अपने कॉलेज की होस्टल की छत पर आत्महत्या करने गया था पर कर नहीं पाया। उस समय मेरे दिमाग में उस दोस्त के लिए कोई ख़याल या चिंता नहीं हुई थी। और फिर वह आगे बोलता चला गया। मुझे उस समय पता नहीं था कि ऐसे भी सुना जा सकता है – Passively.

यह नाटक एक छत से छलांग लगाने की कोशिश करने वाली शहरी मेमसाहब जैसी लड़की पर है जिसके उड़ने से पहले एक देहाती जैसा आदमी समय की तरह आ जाता है और उससे अपनी सीधी-सादी सोच के हिसाब से बात करने लगता है।

नाटक हो जाने के बाद संदीप शिखर (नाटक के मुख्य अभिनेता) से मिलते वक़्त मैं यही कह पाया कि I love the contrast between characters and the way they see things on depression, suicide, happiness and life. उस समय मेरे दिमाग में इससे ज्यादा कुछ नहीं आ पाया। किसी अच्छे नाटक को देखने के बाद उससे जुड़े कलाकारों से मिलते ही आपके पास बोलने के लिए शब्द बहुत कम पड़ रहे होते हैं।

Contrast means विषमता

अवसाद (depression) – शहरी अमीर लोगों के चोंचले

और, आत्महत्या – ग्रामीण गरीब लोगों का दैनिक चुटकुला

इसी विषमता को पाटती हुई यह कहानी समान्य लोगों को suicide, depression जैसे भारी शब्दों का अर्थ समझा पाती है। यह कहानी उस अघटित घटना को दिखाती है जो अगर नहीं घटती तो इसकी ख़बर शायद अखबार के चौथे या पाँचवे पृष्ठ पर मिलती और कभी-कभी तो वह भी नहीं। इस अघटित घटना में life, philosophy, Greek hero, दारू (मतलब संतरा जो बस पी ही गई है), men are so predictable, अबला नारी, तबले की तरह बजता आदमी, whatever, rap और एक लोकगीत शामिल है।

यह नाटक सबको देखनी चाहिए ख़ासकर उनलोगों को जो कहते फिरते हैं

“यार, जिंदगी में ऐसे ही बहुत tension हैं उसपर मैं आत्महत्या पर नाटक देखूँ? मुझे तो कुछ fun देखना है।”

ऐसे लोगों को मैं दूर भागने वाले लोग कहता हूँ। ऐसे लोग किसी के कुछ भी गंभीर बोलते ही अपने जुबान की कैंची चला कर conversation को ‘fun’ बना देते हैं। दर्शकदीर्घा में बैठे हुए वो लोग एक अप्रतिक्रियात्मक (passive) मनुष्य बने रह कर हंसेंगे और जरूरी बात सुनेंगे भी।

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